बेटियों को बोझ माना जाता है, इस बात को दीप्ति ने गलत साबित कर दिया आज़
सुमेरपुर(पाली) पाली जिले के खारड़ा गांव की बेटी दीप्ति कुंवर मेड़तिया ने अपने पिता जितेन्द्र सिंह मेड़तिया को नई जिंदगी देने के लिए अपने लिवर का 60 फीसदी हिस्सा डोनेट किया। गुड़गांव मेदांता हॉस्पिटल में डॉ. अरविंदर सोइन द्वारा किया गया 15 घंटे आपरेशन के बाद पिता को बेटी का लिवर सफलता पुर्वक ट्रांसप्लांट किया। जब पिता का जीवन क्षीण हो रहा था। तब वह उनकी आशा, शक्ति और जीवन रेखा बन गई। बिना कुछ सोचे समझे उसने अपना एक अंश – जिगर -उनको दिया। जिसके प्रेम की कोई सीमा नहीं थी। जब उसके पिता का जीवन क्षीण हो रहा था, तब वह उनकी आशा, उनकी शक्ति और उनकी जीवनरेखा बन गई। यह केवल एक शल्यक्रिया नहीं थी। यह प्रेम,त्याग और समर्पण का सर्वोच्च रूप था। उसने अपने दर्द को शक्ति में बदल दिया। यह साबित करते हुए कि एक बेटी का प्यार अडिग और निडर ह। बेटियों को बोझ माना जाता है। इस बात को गलत साबित किया और कहा कि बेटियां बोझ नहीं बेटियां मुसीबत का सहारा होती है l








